Heeramandi: The Diamond Bazaar ending explained – What happens to Ranis of Lahore? हीरामंडी में कोई नवाब नहीं आरहे थे लेकिन मल्लिका और बब्बो जान ने हार नहीं मानी , उनका कहना भी सही था
क्योंकि किसी को भी मंजूर नहीं था कि उनके साथ जो हो रहा है वह पहले कभी नहीं है देखा जाए तो मल्लिका जान और बाकी सब रानियां लाहौर का बदला हुआ स्वरूप देख रही थी जो कि किसी को भी गवारा नहीं था
और हम पहले भी अगर आपने नहीं देखा है तो पहले आपको देखेंगे तब आपको और ज्यादा अच्छे से समझ में आएगा कि संजय लीला भंसाली ने कितना अच्छा तरह से दिखाया है वैसे तो अगर आप हिस्ट्री की बात करें तो हिस्ट्री में भी इनके बारे में वर्णन है बताया है कि किस तरह से हीरामंडी ज्योति वह कल्चरल तौर पर भी काफी रिच थी और वहां वहां पर क्योंकि नवाब और रानियां यानी तवायफ थी लेकिन जिस तरह से अंग्रेज़ आए आपने तो देखा ही है बड़ी-बड़ी सल्तनत के राजा नहीं टिक पाए तो फिर यह तो का आईआर नवाब ही है कहां तक पाए, हीरा मंडी में मल्लिका जान का सिक्का चलता था पूरा लाहौर उनको जानता था उनकी इज्जत करता था उनसे अपनी बड़ी-बड़ी पार्टियों में बुलाता था यहां तक कि हमने देखा है कि भाई नवाबों के घर में जो बच्चे हैं
आलम के साथ तो कुछ इतना गलत नहीं हुआ मगर जब उसे मालूम हुआ की उसका होने वाला शोहर गलत नहीं थे बल्कि उसका खून अंग्रेजी अफसर cartrit ने किये है तो खुदको संभाल न सकीय लेकिन यह बब्बो जान ने काफी अच्छा कदम उठाया
वो ले गयी आलम को उसके होने वाले शोहर की कब्र पार् और तब आलम ने रोया नहीं तो रो नहीं रही थी
देखा जाए तो तवायफ में भी ईमान दिखाया गया है इधर सारे नावाब मीटिंग करते है की अबसे हीरामंडी कोई नहीं जायेगा क्युकी तवायफे क्रांतिकारियों के साथ मिल चुकी है
यह सब देखकर अच्छा भी लग रहा था की जो तवायफे आपस में लड़ रही थी अब एक साथ होकर केवल देश की आजादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ stand है